सोमवार, 23 मार्च 2020

कोरोना वायरस को चीन की साजिश क्यों बताया जा रहा? क्या हैं वजह


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को लगातार चीनी वायरस कह रहे हैं. कोराना वायरस को किसी देश विशेष के नाम से जोड़ने पर ट्रंप की आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि कोरोना को चीनी वायरस कहना ट्रंप की नस्लवादी और चीन विरोधी सोच को ही दर्शाता है. हालांकि, ट्रंप को लगता है कि कोरोना को चीनी वायरस कहने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि यह वायरस वहीं से आया है.



लेकिन चीन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है. चीन के विशेषज्ञों का भी मानना है कि ट्रंप के ऐसा कहने से कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी और दोनों देशों में कड़वाहट आएगी. इसके साथ ही यह बात भी कही जा रही है कि दुनिया भर में एशिया के लोगों के प्रति नफरत बढ़ेगी. कई ऐसी रिपोर्ट भी आ रही हैं कि एशियाई मूल के अमेरिकी नागरिकों के प्रति नस्लवादी टिप्पणी बढ़ी है.



इस पूरे विवाद पर 'न्यूयॉर्क टाइम्स से सेंटर फोर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज' में चीन के विशेषज्ञ स्कॉट केनेडी ने कहा, कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहना चीन को दुनिया भर में किसी डर के रूप में पेश करने की तरह है. यह नफरत न केवल वहां की सरकार के प्रति बल्कि आम चीनी नागिरकों के खिलाफ भी बढ़ेगी.



मंगलवार को ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से कहा कि वो कोरोना के साथ चीन का नाम इसलिए जोड़ रहे हैं क्योंकि वो लोगों को गलत सूचना दे रहे हैं. ट्रंप ने कहा कि चीन की तरफ से ही कहा गया कि अमेरिकी सैनिकों के जरिए चीन के वुहान में कोरोना वायरस आया.



ट्रंप ने कहा, चीन ने कहा कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के जरिए कोरोना वायरस आया. वो मेरे सैनिकों को बदनाम कर रहे हैं. इसके बाद ट्रंप ने दो ट्वीट किए और दोनों में कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा. ट्रंप ने कहा कि कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई इसलिए उसे चीनी वायरस कहने में कोई समस्या नहीं है.



हालांकि, अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा संचालित करने वाले अधिकारी कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहने से बच रहे हैं. उनका मानना है कि इससे चीन के प्रति नफरत बढ़ेगी. हालांकि, व्हाइट हाउस ने इस पूरे विवाद को खारिज कर दिया और कहा कि पहले भी वायरस का नाम उसकी उत्पति की जगह के नाम पर दिया जाता रहा है. व्हाइट हाउस ने ट्वीट कर कहा, 'स्पैनिश फ्लू, वेस्ट नील वायरस, जीका और इबोला. सारे नाम जगह के नाम से हैं. मीडिया में फर्जी की बहस चल रही है लेकिन सीएनएन ने भी पहले कोरोना को चीनी वायरस ही कहा था.



अमेरिका के भीतर भी कोरोना को चीनी वायरस कहने पर विवाद है. मेडिकल और हेल्थ एक्सपर्ट का कहना है कि महामारी को किसी नस्ल या समुदाय से जोड़ने पर नफरत बढ़ने के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा. जब वुहान में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ तब से ही ट्रंप चीन को निशाने पर ले रहे हैं. ट्रंप ने विदेशी वायरस से खतरे की आशंका भी जाहिर की थी.



ट्रंप ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा, हमने शुरू में ही चीन से आवाजाही बंद कर दी थी. ऐसा करके हमने कई लोगों की जान बचाई. चीन में पिछले साल नवंबर-दिसंबर में ही कोरोना का संक्रमण फैलने लगा था लेकिन ट्रंप ने ट्रैवल बैन फरवरी में जाकर लगाया था. मंगलवार को चीन ने अपने यहां से कई अमेरिकी पत्रकारों को जाने के लिए कहा है. इसके जवाब में ट्रंप प्रशासन ने भी अमेरिका में काम कर रहे कुछ चीनी नागरिकों को जाने के लिए कहा. पिछले हफ्ते ही चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के जरिए कोरोना वायरस आया और यह एक अमेरिकी साजिश थी.



दोनों देशों के संबंध पहले से ही खराब थे लेकिन कोराना वायरस के बाद से संबंधों में अविश्वास और बढ़ा है. अमेरिका का चीन पर आरोप है कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण को ठीक से हैंडल नहीं किया जिससे दुनिया भर में यह फैल गया. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन के भीतर भी इस थ्योरी पर चर्चा हो रही है कि वायरस चीन में वुहान के फूड मार्केट से नहीं फैला है बल्कि चीन की सरकार की वुहान स्थित लैब से फैला है, जहां जैविक हथियार को लेकर रिसर्च का काम चल रहा है



इस थ्योरी की चर्चा फॉक्स न्यूज के टॉक शो में भी हुई. अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन ने इस बात को आगे बढ़ाया. यूरोप और अमेरिका के कई टेब्लॉयड में रिपोर्ट छप रही है कि चीन जैविक हथियार बना रहा था और वहीं से कोरोना फैला है. अमेरिका में कोरोना को लेकर दो खेमे बन गए हैं. एक जो चीन को घेर रहा है और दूसरा कोरोना के खिलाफ मिलकर लड़ने की बात कर रहा है



31 जनवरी को भारतीय शोधकर्ताओं के एक समूह की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि संभव है कि कोरोना वायरस को जानबूझकर पैदा किया गया हो. रिपोर्ट में इस वायरस को चीन के जैविक हथियार होने की आशंका जताई गई थी. इस रिपोर्ट को लेकर काफी विवाद हुआ. विवाद के बाद दो फरवरी को यह रिपोर्ट वापस ले ली गई. कई साइंटिस्ट ने इस रिपोर्ट की आलोचना की और कहा कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि चीन ने कोरोना को जानबूझकर पैदा किया है.



अमेरिकी सीनेटर टॉम कॉटन ने फॉक्स न्यूज के टॉक शो में कहा था, कोरोना वायरस कैसे आया, इसका अभी कोई सबूत नहीं है. यह वुहान के फूड मार्केट से आया, इसे भी हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते. चीन के बारे में हम जानते हैं कि वो नकल करने और बेईमानी के लिए मशहूर है. हमें इसे लेकर शक करना चाहिए और कड़े सवाल भी करने चाहिए.’’ फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में टॉम कॉटन ने वुहान स्थित नेशनल बायोसेफ्टी लैब का हवाला दिया था. कॉटन ने कहा था कि वुहान के जिस फूड मार्केट से कोरोना फैलने की बात कही जा रही है वहीं पर ये लैब स्थित है. कॉटन ने कहा था, हमें नहीं पता है कि यह कहां से पैदा हुआ. हमें ये पता है कि फूड मार्केट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही चीन का इकलौता बायोसेफ्टी लेवल फोर का सुपर लैब है. हालांकि, कॉटन के पास कोई सबूत नहीं है कि कोरोना चीन के उस लैब में पैदा किया गया है.



कॉटन के शक को लेकर अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने कई विशेषज्ञों से बात की और सबने इस थ्योरी को नकार दिया. किसी ने नहीं कहा कि यह मैन मेड है. रटगर्स यूनिवर्सिटी में केमिकल बायॉलजी के प्रोफेसर रिचर्ड एब्राइट ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा, इस वायरस के जीनोम सीक्वेंस को देखें तो साफ हो जाता है कि इसे जानबूझकर नहीं तैयार किया गया है. मैशाचुसेट्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विपिन नारंग का भी कहना है कॉटन की बातों में कोई ठोस तर्क नहीं है जिसके आधार पर भरोसा किया जा सके.


 


 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें